अगर अस्पताल इलाज से मना कर दे तो क्या करें? जानिए Patient Rights in India

क्या आप जानते हैं कि भारत में हर साल हज़ारों मरीज़ों को अस्पतालों द्वारा इलाज से मना कर दिया जाता है? यह सुनने में भले ही चौंकाने वाला लगे, लेकिन यह एक कड़वा सच है। अस्पतालों द्वारा इलाज से मना करने की घटनाएं न सिर्फ मरीज़ों के जीवन को खतरे में डालती हैं, बल्कि उनके मौलिक अधिकारों का भी उल्लंघन करती हैं।
भारत में अस्पतालों द्वारा इलाज से मना करने के पीछे कई कारण हैं, जैसे आर्थिक मुद्दे, संसाधनों की कमी, या फिर कानूनी डर। लेकिन क्या आप जानते हैं कि ऐसी स्थिति में आपके पास क्या विकल्प हैं? क्या आप जानते हैं कि भारत में मरीज़ों के क्या अधिकार हैं?
इस ब्लॉग पोस्ट में, हम आपको बताएंगे कि अगर अस्पताल इलाज से मना कर दे तो आपको क्या करना चाहिए। साथ ही, हम भारत में मरीज़ों के अधिकारों (Patient Rights in India) और कानूनी प्रावधानों के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे। चाहे वह आपातकालीन इलाज हो या फिर कानूनी सहायता, यहां आपको हर जानकारी मिलेगी जो आपके लिए ज़रूरी है।
तो चलिए, शुरू करते हैं और जानते हैं कि आप अपने अधिकारों को कैसे सुरक्षित रख सकते हैं।
अस्पताल इलाज से मना क्यों करते हैं? (Why Do Hospitals Deny Treatment?)
अस्पतालों द्वारा इलाज से मना करने के पीछे कई कारण हो सकते हैं। यह समस्या न सिर्फ मरीज़ों के लिए बल्कि उनके परिवारों के लिए भी एक बड़ी चुनौती बन जाती है। आइए, इन कारणों को विस्तार से समझते हैं:
1. Financial Reasons (मरीज के पास पैसे न होना)
भारत में कई अस्पताल, खासकर प्राइवेट अस्पताल, इलाज से पहले मरीज़ से एक बड़ी रकम जमा करने की मांग करते हैं। अगर मरीज़ या उसके परिवार के पास पर्याप्त पैसे नहीं होते हैं, तो अस्पताल इलाज शुरू करने से मना कर देते हैं। यह स्थिति आपातकालीन मामलों में और भी गंभीर हो जाती है, जहां समय की कमी के कारण मरीज़ की जान जोखिम में पड़ सकती है।
2. Lack of Beds or Resources (संसाधनों की कमी)
कई बार अस्पतालों में बेड, मेडिकल उपकरण, या दवाइयों की कमी होती है। यह समस्या सरकारी अस्पतालों में ज्यादा देखी जाती है, जहां मरीज़ों की संख्या अधिक होती है, लेकिन संसाधन सीमित होते हैं। ऐसे में, अस्पताल नए मरीज़ों को एडमिट करने से मना कर देते हैं।
3. Legal Fears (कानूनी डर)
कुछ अस्पताल कानूनी मुसीबतों के डर से इलाज शुरू करने से हिचकिचाते हैं। उदाहरण के लिए, अगर मरीज़ की हालत गंभीर है और उसके बचने की संभावना कम है, तो अस्पताल उसे एडमिट करने से बच सकते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि अगर मरीज़ की मृत्यु हो जाती है, तो उसके परिवार वाले अस्पताल के खिलाफ केस कर सकते हैं।
4. Non-Availability of Specialists (विशेषज्ञों की अनुपलब्धता)
कुछ मामलों में, अस्पताल में जरूरी विशेषज्ञ डॉक्टर या सर्जन उपलब्ध नहीं होते हैं। ऐसे में, अस्पताल मरीज़ को दूसरे अस्पताल में रेफर कर देते हैं या इलाज शुरू करने से मना कर देते हैं। यह समस्या छोटे शहरों और ग्रामीण इलाकों में ज्यादा देखी जाती है, जहां विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी होती है।
क्या यह सही है?
अस्पतालों द्वारा इलाज से मना करना नैतिक और कानूनी दोनों ही तरह से गलत है। भारत में मरीज़ों के अधिकार (Patient Rights in India) सुरक्षित हैं, और अस्पतालों का यह कर्तव्य है कि वे आपातकालीन स्थितियों में तुरंत इलाज शुरू करें। अगर आप या आपका कोई परिचित ऐसी स्थिति का सामना कर रहा है, तो आपको अपने अधिकारों के बारे में जानना चाहिए और उचित कदम उठाने चाहिए।
Patient Rights in India (भारत में मरीजों के अधिकार)
भारत में हर मरीज़ के पास कुछ मौलिक अधिकार होते हैं, जो उन्हें बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं प्राप्त करने में मदद करते हैं। यह अधिकार न सिर्फ मरीज़ों को सुरक्षा प्रदान करते हैं, बल्कि उन्हें अपने इलाज के बारे में सही निर्णय लेने का अवसर भी देते हैं। आइए, भारत में मरीज़ों के मुख्य अधिकारों को विस्तार से समझते हैं:
1. Right to Emergency Medical Care (आपातकालीन इलाज का अधिकार)
भारत में हर मरीज़ को आपातकालीन स्थिति में तुरंत इलाज पाने का अधिकार है। चाहे मरीज़ के पास पैसे हों या न हों, अस्पताल उसे इलाज से मना नहीं कर सकते। यह अधिकार Clinical Establishments Act, 2010 और Indian Medical Council (Professional Conduct) Regulations के तहत सुरक्षित है।
- उदाहरण: अगर किसी को हार्ट अटैक आता है या कोई गंभीर दुर्घटना होती है, तो अस्पताल को तुरंत इलाज शुरू करना होगा।
2. Right to Information (जानकारी का अधिकार)
मरीज़ को अपने इलाज से जुड़ी हर जानकारी पाने का अधिकार है। इसमें बीमारी का कारण, इलाज के विकल्प, दवाइयों के साइड इफेक्ट्स, और इलाज की लागत शामिल है। डॉक्टर और अस्पताल का कर्तव्य है कि वे मरीज़ को स्पष्ट और सही जानकारी दें।
- उदाहरण: अगर किसी सर्जरी से पहले मरीज़ को उसके जोखिम और फायदे के बारे में नहीं बताया जाता है, तो यह उसके अधिकार का उल्लंघन है।
3. Right to Confidentiality (गोपनीयता का अधिकार)
मरीज़ की मेडिकल जानकारी गोपनीय होती है, और इसे बिना उसकी सहमति के किसी के साथ साझा नहीं किया जा सकता। यह अधिकार Indian Medical Council Act और Information Technology Act, 2000 के तहत सुरक्षित है।
- उदाहरण: अगर कोई डॉक्टर या अस्पताल मरीज़ की बीमारी के बारे में किसी तीसरे व्यक्ति को बताता है, तो यह गोपनीयता का उल्लंघन है।
4. Right to Second Opinion (दूसरी राय लेने का अधिकार)
मरीज़ को अपने इलाज के लिए दूसरे डॉक्टर या विशेषज्ञ की राय लेने का पूरा अधिकार है। यह अधिकार मरीज़ को यह सुनिश्चित करने में मदद करता है कि उसे सही और उचित इलाज मिल रहा है।
- उदाहरण: अगर किसी मरीज़ को लगता है कि उसका डॉक्टर सही निदान नहीं कर रहा है, तो वह किसी अन्य डॉक्टर से सलाह ले सकता है।
क्यों हैं ये अधिकार ज़रूरी?
मरीज़ों के ये अधिकार उन्हें स्वास्थ्य सेवाओं में पारदर्शिता और न्याय सुनिश्चित करते हैं। यह अधिकार न सिर्फ मरीज़ों को सशक्त बनाते हैं, बल्कि डॉक्टरों और अस्पतालों को भी जिम्मेदारी से काम करने के लिए प्रेरित करते हैं। यहां जानें कि अगर पुलिस FIR नहीं लिख रही है तो क्या करें।
अगर आपको लगता है कि आपके अधिकारों का उल्लंघन हुआ है, तो आप Consumer Court या Indian Medical Association (IMA) में शिकायत दर्ज कर सकते हैं।
अगर अस्पताल इलाज से मना कर दे तो क्या करें? (What to Do If a Hospital Denies Treatment?)
अगर किसी अस्पताल ने आपको या आपके परिवार के किसी सदस्य को इलाज से मना कर दिया है, तो यह एक गंभीर मुद्दा है। लेकिन घबराने की जरूरत नहीं है, क्योंकि भारत में मरीज़ों के अधिकार सुरक्षित हैं, और आप कानूनी तौर पर अपने अधिकारों की रक्षा कर सकते हैं। यहां बताए गए स्टेप्स को फॉलो करके आप सही कदम उठा सकते हैं:
Step 1: Stay Calm and Gather Evidence (शांत रहें और सबूत इकट्ठा करें)
सबसे पहले, शांत रहें और स्थिति को समझें। सबूत इकट्ठा करना बहुत जरूरी है, क्योंकि यह आपके केस को मजबूत बनाएगा।
- अस्पताल के कर्मचारियों से बातचीत रिकॉर्ड करें:
अगर अस्पताल के कर्मचारी या डॉक्टर इलाज से मना कर रहे हैं, तो उनकी बातचीत को रिकॉर्ड करें। यह ऑडियो या वीडियो रिकॉर्डिंग हो सकती है। - मेडिकल डॉक्यूमेंट्स और बिल्स को सेव करें:
अस्पताल द्वारा दिए गए सभी दस्तावेज़, पर्चे, बिल, और रिपोर्ट्स को सुरक्षित रखें। ये दस्तावेज़ आपके केस में महत्वपूर्ण सबूत हो सकते हैं।
Step 2: Contact Hospital Authorities (अस्पताल प्रबंधन से संपर्क करें)
अगर अस्पताल के कर्मचारी इलाज से मना कर रहे हैं, तो अस्पताल के उच्च अधिकारियों से संपर्क करें।
- शिकायत दर्ज करें और लिखित में जवाब मांगें:
अस्पताल के प्रबंधन को एक लिखित शिकायत दें और उनसे लिखित में जवाब मांगें। यह शिकायत आपके केस को मजबूत बनाएगी।
Step 3: Seek Legal Help (कानूनी सहायता लें)
अगर अस्पताल प्रबंधन आपकी शिकायत पर कोई कार्रवाई नहीं करता है, तो कानूनी कदम उठाएं।
- Consumer Court (उपभोक्ता अदालत) में केस दर्ज करें:
भारत में, मरीज़ एक उपभोक्ता के रूप में माने जाते हैं। उपभोक्ता अधिकार न सिर्फ प्रोडक्ट्स के मामलों में, बल्कि स्वास्थ्य सेवाओं में भी लागू होते हैं। आप Consumer Protection Act, 2019 के तहत उपभोक्ता अदालत में केस दर्ज कर सकते हैं। - Indian Medical Association (IMA) से संपर्क करें:
IMA डॉक्टरों और अस्पतालों के लिए एक नियामक संस्था है। आप IMA में शिकायत दर्ज करके अस्पताल के खिलाफ कार्रवाई कर सकते हैं।
Step 4: Approach Government Helplines (सरकारी हेल्पलाइन्स का उपयोग करें)
सरकारी हेल्पलाइन्स और संस्थाएं आपकी मदद कर सकती हैं।
- National Health Authority (NHA) हेल्पलाइन:
NHA आयुष्मान भारत योजना के तहत मरीज़ों की मदद करता है। आप NHA की हेल्पलाइन नंबर पर संपर्क कर सकते हैं। - State health department से संपर्क करें:
राज्य स्वास्थ्य विभाग में शिकायत दर्ज करें। यह विभाग अस्पतालों पर नजर रखता है और आपकी शिकायत पर कार्रवाई कर सकता है।
कानूनी प्रावधान (Legal Provisions in India)
भारत में मरीज़ों के अधिकारों को सुरक्षित रखने के लिए कई कानूनी प्रावधान बनाए गए हैं। ये कानून न सिर्फ मरीज़ों को सुरक्षा प्रदान करते हैं, बल्कि अस्पतालों और डॉक्टरों को भी जिम्मेदारी से काम करने के लिए प्रेरित करते हैं। आइए, इन कानूनी प्रावधानों को विस्तार से समझते हैं:
1. Indian Medical Council (Professional Conduct) Regulations
यह नियम डॉक्टरों के पेशेवर आचरण को नियंत्रित करते हैं और उन्हें मरीज़ों के प्रति जिम्मेदार बनाते हैं।
- डॉक्टरों को आपातकालीन मामलों में इलाज देना अनिवार्य है:
इस नियम के तहत, डॉक्टरों को आपातकालीन स्थितियों में तुरंत इलाज शुरू करना होगा, चाहे मरीज़ के पास पैसे हों या न हों। अगर कोई डॉक्टर ऐसा नहीं करता है, तो उसके खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है। - उदाहरण: अगर किसी मरीज़ को हार्ट अटैक आता है या कोई गंभीर दुर्घटना होती है, तो डॉक्टर को तुरंत इलाज शुरू करना होगा।
2. Consumer Protection Act, 2019
यह कानून मरीज़ों को उपभोक्ता के रूप में मानता है और उनके अधिकारों की रक्षा करता है।
- मरीज़ एक उपभोक्ता है और उसके अधिकार सुरक्षित हैं:
इस कानून के तहत, अगर कोई अस्पताल या डॉक्टर मरीज़ के साथ गलत व्यवहार करता है या इलाज से मना कर देता है, तो मरीज़ उपभोक्ता अदालत में शिकायत दर्ज कर सकता है। - उदाहरण: अगर किसी मरीज़ को गलत इलाज मिलता है या उसके साथ धोखाधड़ी होती है, तो वह Consumer Court में केस दर्ज कर सकता है।
3. Clinical Establishments Act, 2010
यह कानून अस्पतालों और क्लीनिकों को मानकों का पालन करने के लिए बाध्य करता है।
- अस्पतालों को मानकों का पालन करना अनिवार्य है:
इस कानून के तहत, हर अस्पताल को स्वास्थ्य सेवाओं के लिए निर्धारित मानकों का पालन करना होगा। इसमें आपातकालीन सेवाएं, साफ-सफाई, और मरीज़ों के अधिकार शामिल हैं। - उदाहरण: अगर कोई अस्पताल मानकों का पालन नहीं करता है, तो उसके खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है।
इन कानूनों का महत्व
ये कानूनी प्रावधान मरीज़ों को सुरक्षा और न्याय प्रदान करते हैं। यह सुनिश्चित करते हैं कि अस्पताल और डॉक्टर अपनी जिम्मेदारियों को समझें और मरीज़ों के साथ न्यायसंगत व्यवहार करें।
अगर आपको लगता है कि आपके अधिकारों का उल्लंघन हुआ है, तो आप इन कानूनों के तहत कार्रवाई कर सकते हैं।
Real-Life Cases (वास्तविक जीवन के केस)
अस्पतालों द्वारा इलाज से मना करने की घटनाएं भारत में आम हैं, लेकिन कुछ मामले ऐसे हैं जिन्होंने सुर्खियां बटोरीं और कानूनी प्रक्रिया को आगे बढ़ाया। यहां हम ऐसे ही कुछ मशहूर मामलों और अदालती फैसलों के बारे में जानेंगे, जो मरीज़ों के अधिकारों को मजबूत करते हैं।
1. अस्पताल द्वारा इलाज से मना करने के कुछ मशहूर मामले
केस 1: दिल्ली में आपातकालीन इलाज से मना करने का मामला
- घटना: 2017 में, दिल्ली के एक प्राइवेट अस्पताल ने एक 7 साल के बच्चे को इलाज से मना कर दिया, क्योंकि उसके परिवार के पास पैसे नहीं थे। बच्चे की हालत गंभीर थी, और उसे तुरंत इलाज की जरूरत थी।
- नतीजा: इस मामले ने सोशल मीडिया पर तूफान मचा दिया, और अस्पताल के खिलाफ कार्रवाई की गई। बाद में, अस्पताल ने माफी मांगी और बच्चे का इलाज किया।
केस 2: गर्भवती महिला को इलाज से मना करना
- घटना: 2018 में, उत्तर प्रदेश के एक सरकारी अस्पताल ने एक गर्भवती महिला को इलाज से मना कर दिया, क्योंकि अस्पताल में बेड उपलब्ध नहीं थे। महिला को दूसरे अस्पताल ले जाया गया, लेकिन वहां पहुंचने से पहले ही उसकी मृत्यु हो गई।
- नतीजा: इस घटना के बाद, राज्य सरकार ने अस्पताल के डॉक्टरों और कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई की।
2. Court Rulings and Compensations (अदालती फैसले और मुआवजे)
केस 1: Consumer Court का ऐतिहासिक फैसला
- घटना: 2015 में, मुंबई के एक प्राइवेट अस्पताल ने एक मरीज़ को इलाज से मना कर दिया, क्योंकि उसके परिवार के पास पैसे नहीं थे। मरीज़ की हालत गंभीर थी, और उसकी मृत्यु हो गई।
- अदालती फैसला: Consumer Court ने अस्पताल को दोषी ठहराया और मरीज़ के परिवार को 10 लाख रुपये का मुआवजा देने का आदेश दिया।
- महत्व: यह फैसला मरीज़ों के अधिकारों को मजबूत करने वाला एक ऐतिहासिक फैसला था।
केस 2: Supreme Court का आदेश
- घटना: 2019 में, सुप्रीम कोर्ट ने एक केस में फैसला सुनाया कि किसी भी अस्पताल को आपातकालीन स्थिति में मरीज़ को इलाज से मना नहीं करना चाहिए।
- अदालती फैसला: कोर्ट ने कहा कि अस्पतालों का कर्तव्य है कि वे मरीज़ों को तुरंत इलाज दें, चाहे उनके पास पैसे हों या न हों।
- महत्व: यह फैसला मरीज़ों के अधिकारों को सुरक्षित करने की दिशा में एक बड़ा कदम था।
इन मामलों से सीख
ये मामले हमें यह सीख देते हैं कि मरीज़ों के अधिकारों की रक्षा करना कितना जरूरी है। अगर किसी अस्पताल ने इलाज से मना कर दिया है, तो आपको अपने अधिकारों के लिए लड़ना चाहिए।
ऐसी स्थितियों से बचने के टिप्स (Tips to Avoid Such Situations)
अस्पतालों द्वारा इलाज से मना करने की स्थिति से बचने के लिए कुछ सावधानियां और तैयारियां जरूरी हैं। यहां हम आपको कुछ ऐसे टिप्स बता रहे हैं, जो आपको ऐसी समस्याओं से बचाने में मदद करेंगे:
1. हमेशा अपने पास मेडिकल इंश्योरेंस रखें
मेडिकल इंश्योरेंस आपको आर्थिक तनाव से बचाता है और अस्पतालों द्वारा इलाज से मना करने की स्थिति से बचाता है।
- क्यों जरूरी है?
प्राइवेट अस्पताल अक्सर मरीज़ों से भारी रकम जमा करने की मांग करते हैं। अगर आपके पास मेडिकल इंश्योरेंस है, तो आप इस स्थिति से बच सकते हैं। - कैसे चुनें?
अपनी जरूरतों के हिसाब से एक अच्छा मेडिकल इंश्योरेंस प्लान चुनें। इसमें आपातकालीन इलाज, हॉस्पिटलाइजेशन, और अन्य स्वास्थ्य सेवाएं शामिल होनी चाहिए।
2. Government Hospitals और Trust-Run Hospitals को प्राथमिकता दें
सरकारी अस्पताल और ट्रस्ट-रन अस्पताल अक्सर प्राइवेट अस्पतालों की तुलना में ज्यादा विश्वसनीय होते हैं।
- क्यों बेहतर हैं?
ये अस्पताल मरीज़ों से पैसे की मांग नहीं करते और आपातकालीन स्थितियों में तुरंत इलाज शुरू करते हैं। - उदाहरण: AIIMS, सफदरजंग अस्पताल, और अन्य सरकारी अस्पतालों में आपातकालीन सेवाएं मुफ्त या कम लागत में उपलब्ध हैं।
3. Emergency Contacts और Helplines को सेव करके रखें
आपातकालीन स्थितियों में सही संपर्क जानकारी होना बहुत जरूरी है।
- क्या करें?
अपने फोन में निम्नलिखित हेल्पलाइन नंबर सेव करें:- राष्ट्रीय स्वास्थ्य हेल्पलाइन: 104
- आयुष्मान भारत हेल्पलाइन: 14555
- पुलिस हेल्पलाइन: 100
- एम्बुलेंस सेवा: 102
- क्यों जरूरी है?
ये हेल्पलाइन्स आपको आपातकालीन स्थितियों में तुरंत मदद दिला सकती हैं।
4. अपने अधिकारों के बारे में जानें
मरीज़ों के अधिकारों के बारे में जागरूकता आपको अस्पतालों द्वारा इलाज से मना करने की स्थिति से बचा सकती है।
- क्या करें?
- Patient Rights in India के बारे में जानें।
- Consumer Protection Act, 2019 और Clinical Establishments Act, 2010 के बारे में पढ़ें।
5. परिवार और दोस्तों के साथ संपर्क में रहें
आपातकालीन स्थितियों में परिवार और दोस्तों का सहयोग बहुत जरूरी है।
- क्या करें?
- अपने परिवार और दोस्तों को अपने मेडिकल इतिहास और जरूरी दस्तावेज़ों के बारे में जानकारी दें।
- आपातकालीन स्थितियों में उन्हें तुरंत सूचित करें।
निष्कर्ष (Conclusion)
अस्पताल द्वारा इलाज से मना करना न सिर्फ एक गंभीर मुद्दा है, बल्कि यह मरीज़ों के जीवन और उनके अधिकारों के साथ खिलवाड़ करने जैसा है। हालांकि, यह जानकर आश्वस्ति मिलती है कि भारत में मरीज़ों के पास कानूनी अधिकार (Patient Rights in India) हैं, जो उन्हें ऐसी स्थितियों में न्याय दिलाने में मदद कर सकते हैं।
अगर आप या आपके कोई जानने वाले कभी ऐसी स्थिति का सामना करें, तो घबराएं नहीं। सही जानकारी और सही कदम उठाकर आप न सिर्फ अपने अधिकारों की रक्षा कर सकते हैं, बल्कि दूसरों को भी जागरूक कर सकते हैं।
इस ब्लॉग पोस्ट को शेयर करें ताकि और लोग भी अपने अधिकारों के बारे में जान सकें और ऐसी स्थितियों में सही कदम उठा सकें। साथ ही, अगर आपके पास इस विषय से जुड़े कोई सवाल या अनुभव हैं, तो कमेंट करके हमें ज़रूर बताएं।
याद रखें, जागरूकता ही सबसे बड़ा हथियार है। आइए, मिलकर एक बेहतर और न्यायपूर्ण स्वास्थ्य व्यवस्था की ओर कदम बढ़ाएं।
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQs)
1. क्या कोई अस्पताल इलाज करने से मना कर सकता है?
नहीं, भारत में कोई भी अस्पताल इमरजेंसी मेडिकल कंडीशन में इलाज से इनकार नहीं कर सकता। सुप्रीम कोर्ट और मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (MCI) के दिशा-निर्देशों के अनुसार, हर अस्पताल का यह कर्तव्य है कि वह मरीज को आवश्यक प्राथमिक उपचार दे।
2. अगर सरकारी अस्पताल इलाज करने से मना कर दे तो क्या करें?
यदि कोई सरकारी अस्पताल इलाज से इनकार करता है, तो आप संबंधित अस्पताल के उच्च अधिकारियों या स्वास्थ्य विभाग में शिकायत कर सकते हैं। इसके अलावा, राज्य या राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में भी शिकायत दर्ज कर सकते हैं।
3. क्या निजी अस्पताल मरीज को भर्ती करने से मना कर सकते हैं?
निजी अस्पताल गैर-इमरजेंसी मामलों में अपनी सुविधाओं के अनुसार मरीज को भर्ती करने से इनकार कर सकते हैं, लेकिन इमरजेंसी केस में वे इलाज करने से इनकार नहीं कर सकते।
4. क्या कोई अस्पताल मरीज को बिना डिस्चार्ज किए निकाल सकता है?
नहीं, बिना उचित कारण के किसी भी अस्पताल को मरीज को बाहर निकालने का अधिकार नहीं है। यदि ऐसा किया जाता है, तो यह एक कानूनी अपराध हो सकता है, और मरीज के परिवार को कानूनी कार्रवाई का अधिकार होता है।
5. अगर अस्पताल इलाज के लिए ज्यादा पैसे मांगे तो क्या करें?
यदि अस्पताल जरूरत से ज्यादा पैसे वसूल रहा है, तो आप राज्य स्वास्थ्य प्राधिकरण, उपभोक्ता फोरम, या चिकित्सा परिषद (MCI) में शिकायत कर सकते हैं।
6. क्या सरकारी योजनाओं के तहत इलाज से मना किया जा सकता है?
नहीं, यदि आप आयुष्मान भारत योजना या किसी अन्य सरकारी स्वास्थ्य योजना के पात्र हैं, तो सूचीबद्ध अस्पतालों को आपको मुफ्त या सब्सिडी वाले इलाज की सुविधा देनी होगी।
7. इलाज से इनकार करने पर कहां शिकायत कर सकते हैं?
आप निम्नलिखित जगहों पर शिकायत कर सकते हैं:
- अस्पताल प्रशासन
- राज्य या जिला स्वास्थ्य विभाग
- मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (MCI)
- उपभोक्ता फोरम
- कोर्ट या मानवाधिकार आयोग
8. क्या डॉक्टर किसी विशेष मरीज का इलाज करने से मना कर सकते हैं?
हां, डॉक्टर को यह अधिकार है कि वे नैतिक या व्यावसायिक कारणों से किसी मरीज का इलाज न करें, लेकिन इमरजेंसी में ऐसा करना गैरकानूनी हो सकता है।
9. क्या मरीज के पास इलाज चुनने का अधिकार होता है?
हां, मरीज को यह अधिकार होता है कि वह अपना इलाज खुद चुन सके और किसी भी चिकित्सा प्रक्रिया को स्वीकार या अस्वीकार कर सके।
10. अगर अस्पताल लापरवाही बरतता है तो क्या किया जा सकता है?
यदि अस्पताल की लापरवाही से मरीज को नुकसान हुआ है, तो उपभोक्ता फोरम, मेडिकल काउंसिल, या कोर्ट में मुआवजे और कार्रवाई के लिए शिकायत दर्ज की जा सकती है।